जेंडर और जलवायु न्याय को आगे बढ़ाने वाले सीओपी (COP) की ओर


190 से अधिक देशों के नेता, अंतर्राष्ट्रीय संगठन, नागरिक समाज के सदस्य और कार्यकर्ता अब 26वें यूएन क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP26) के लिये ग्लासगो, स्कॉटलैंड में मिल कर रहे हैं।

वे इकट्ठा हो रहे हैं क्योंकि दुनिया अभी उस गंभीरता को समझना शुरू कर रही है जिसके साथ महामारी ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया है और यह उन देशों और सामाजिक समूहों – जैसे कि महिलायें और लड़कियाँ – के लिये विशेष रूप से विनाशकारी है जो पहले से ही कमज़ोर थे। जैसा कि महिलाओं पर कोविड -19 के प्रभाव पर हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की नीति में कहा गया है, “स्वास्थ्य से लेकर अर्थव्यवस्था तक, सुरक्षा से लेकर सामाजिक सुरक्षा तक, हर क्षेत्र में, कोविड – 19 के प्रभाव महिलाओं और लड़कियों के लिये केवल उनके जेंडर के आधार पर ही बढ़ जाते हैं।”

महामारी की तरह, जलवायु संकट जेंडर और सामाजिक असमानताओं को उजागर कर रहा है और आगे बढ़ा रहा है। जलवायु परिवर्तन अब भविष्य के लिये समस्या नहीं रह गयी है; दुनियाभर में महिलायें और लड़कियाँ अभी इसके सबसे खतरनाक परिणामों का सामना कर रही हैं, और यह केवल बदतर होती जा रही है। इसलिये COP26 में सरकारें जो निर्णय लेती हैं, वे ग्रह के भविष्य के लिये महत्वपूर्ण हैं। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने पहले ही बताया है कि “अतीत और भविष्य के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण कई बदलाव अपरिवर्तनीय हैं” और यह कि हमारी स्थिति गंभीर है क्योंकि हम वापसी न कर पाने के संभावित बिंदु के करीब हैं।

COP26 को फ्रेम करने वाले संदर्भ में सभी सरकारों को जेंडर-न्यायसंगत जलवायु कार्यवाही के लिये ईमानदारी से प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता होती है जो उन ऐतिहासिक असमानताओं का प्रतिकार करती है जो हमारे द्वारा अनुभव किये जा रहे सामाजिक, पर्यावरणीय और जेंडर प्रभावों का कारण बनती हैं। इस कारण से, कम से कम तीन मोर्चों पर प्रगति करना अनिवार्य है:

1. जेंडर न्याय को बढ़ावा देते हुये वैश्विक ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखें

जिस तरह से ऐतिहासिक रूप से ऊर्जा का उत्पादन किया गया है, उन जगहों पर रहने वाली महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है जहाँ ये प्रक्रियाएं होती हैं। बड़े जलविद्युत बांधों और गैस, कोयले और तेल की निकासी जैसे झूठे जलवायु समाधानों के विकास ने पर्यावरण और समाज को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, महिलाओं के रहने की स्थिति को और अधिक अनिश्चित बना दिया है, और हिंसा के नये और कठोर रूपों को जन्म देते हुये उनके अवैतनिक कार्यभार में वृद्धि की है।

ऊर्जा के निम्न-कार्बन स्रोतों में परिवर्तन को केवल कच्चे माल में परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिये; जिस तरीके से ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है वह भी जेंडर न्याय में कारक होना चाहिये, निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिये, कल्याण उत्पन्न करना चाहिये’, और उन समुदायों के अधिकारों की गारंटी देनी चाहिये जहाँ ये प्रक्रियाएं होती हैं।

2015 तक, 145 देशों ने अक्षय ऊर्जा को विनियमित और बढ़ावा देने के लिये नीतियां और कानूनी ढांचे बनाये थे, लेकिन इनमें से अधिकांश एक जेंडर परिप्रेक्ष्य को शामिल करने में विफल रहे। सरकारों  के लिये एक उचित ऊर्जा संक्रमण सुनिश्चित करने के लिये, यह महत्वपूर्ण है कि वे जो ऊर्जा उत्पादन, वितरण और खपत के समुदाय-आधारित मॉडल का समर्थन करें जो महिलाओं के अधिकारों और आवाजों को केंद्र में रखता है। मध्य अमेरिका में, ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ छोटे बांधों या टर्बाइनों के निर्माण के आसपास समुदाय संगठित हुये जो बड़े बांधों के नकारात्मक पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों के बिना स्थानीय ऊर्जा का उत्पादन करते हैं।

2. महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिये जलवायु वित्त पोषण जुटाना

कोपेनहेगन में बारह साल पहले COP15 में, धनी देशों ने 2020 तक कम धनी देशों को सालाना 10000 करोड़ रुपये (100 बिलियन अमेरिकी डॉलर) देने का वादा किया था, ताकि उन्हें जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने और तापमान में और वृद्धि को कम करने में मदद मिल सके। यह लक्ष्य पूरा नहीं हुआ।

केवल शमन और अनुकूलन प्रयासों का समर्थन करने के लिये, धनी राष्ट्रों को न केवल इस प्रतिज्ञा को पूरा करना चाहिये, बल्कि यह जलवायु वित्त पोषण उन लोगों तक भी पहुँचना चाहिये जिनकी आवश्यकता सबसे बड़ी है: देश, [समाज के] क्षेत्र, और लोग जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हैं। संसाधन प्रबंधन दिशानिर्देशों को महिलाओं की आवाज़, दृष्टिकोण और ज्ञान को केन्द्रित करना चाहिये। फंडिंग को मानवाधिकार मानकों का सम्मान करना चाहिये, खासकर जब स्थानीय समुदायों और महिलाओं की बात आती है, और एक प्रभावी जवाबदेही प्रणाली होनी चाहिये जो यह सुनिश्चित करे कि धन का उपयोग ज़िम्मेदारी से इस तरह से किया जाये जो सामान्य रूप से महिलाओं, स्वदेशी लोगों, ग्रामीण समुदायों और मनुष्यों के अधिकारों का सम्मान करे।

3. वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) में नुकसान और क्षति का मुकाबला करने के उपायों को मज़बूत करें

शमन और अनुकूलन के अलावा, पेरिस समझौते का अनुच्छेद 8 नुकसान और क्षति – जैसे कि समुद्र के स्तर में वृद्धि, चरम मौसम की घटनाएं, आजीविका को आर्थिक नुकसान और विस्थापन – को मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के कारण जलवायु कार्रवाई के तीसरे स्तंभ के रूप में स्थापित करता है । इस स्तंभ को मुख्य रूप से दुनियाभर के कमज़ोर देशों और सामाजिक आंदोलनों द्वारा धक्का दिया गया है, जो मांग करते हैं कि जलवायु परिवर्तन के लिये एक उचित और व्यवस्थित प्रतिक्रिया के हिस्से के रूप में नुकसान और क्षति को अंतर्राष्ट्रीय जलवायु एजेंडें में प्रभावी ढंग से एकीकृत किया जाये।

कमज़ोर स्थितियों में राष्ट्र, समुदाय और समूह (विशेषकर महिलायें) पहले से ही जलवायु परिवर्तन के सबसे नकारात्मक प्रभावों से पीड़ित हैं, हालाँकि वे जलवायु संकट के लिये सबसे कम ज़िम्मेदार हैं। उदाहरण के लिये, मेक्सिको के युकाटन प्रायद्वीप की स्वदेशी मायन महिलाओं ने देखा है कि उनकी फसलें नष्ट हो गई हैं और तेजी से बढ़ते तूफान के मौसम के कारण उनकी आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। उन परिदृश्यों में जहाँ नुकसान और क्षति पहले ही हो चुकी है वहाँ शमन और अनुकूलन क्रियाएं अब संभव नहीं हैं। ये परिदृश्य दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषकों से प्रभावी प्रतिक्रिया की मांग करते हैं, जो ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी और न्याय में निहित हैं।

क्षति के साक्ष्य और अन्यायपूर्ण संदर्भों के बावजूद, पिछली जलवायु वार्ताओं ने इस स्तंभ को मज़बूत करने और ठोस वित्तीय प्रतिबद्धताओं की अनुमति देने वाले ढांचे को बढ़ावा देने के मामले में बहुत कम प्रगति की है। अनुच्छेद 8 स्पष्ट रूप से कहता है कि यह “किसी भी दायित्व या मुआवजे को  शामिल नहीं करता है या उसके लिए आधार प्रदान नहीं करता है।” यह अत्यावश्यक है कि COP26 के निर्णयकर्ता महिलाओं और उनके समुदायों द्वारा पहले से अनुभव की गई हानि और क्षति के वित्तपोषण के लिये आगे ठोस कदमों पर सहमत हों।

जलवायु संकट के सबसे बुरे प्रभावों को कम करने के लिये एक रास्ता है, लेकिन केवल तभी जब विश्व के नेता तत्काल: महिलाओं के अधिकारों और आवाज़ों को उनके ऊर्जा संक्रमण में प्राथमिकता दें; स्थानीय महिलाओं के नेतृत्व वाले जलवायु प्रस्तावों और समाधानों के लिये धन जुटायें; और कमज़ोर समुदायों द्वारा मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन से अनुभव किये गये नुकसान और क्षति के लिये क्षतिपूर्ति करें। समाधान पहले से ही हैं; हमें अभी कार्यवाही करने की आवश्यकता है।

 

लिलियाना एविला इंटरअमेरिकन एसोसिएशन फॉर एनवायर्नमेंटल डिफेंस (AIDA) में मानवाधिकार और पर्यावरण कार्यक्रम की वरिष्ठ वकील हैं। एआईडीए पूरे लैटिन अमेरिका में पर्यावरण और समुदायों को पर्यावरण के नुकसान से बचाने के लिये ज्ञान का प्रसार करके, कानूनी तर्कों को गढ़ने, नीतियों और कानूनों को मज़बूत करने और कानून को लागू करने के लिये समुदायों के लिये मॉडल रणनीति बनाने के लिये कानून का उपयोग करता है।


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