फीजी में नारीवादी जलवायु कार्रवाही के लिए आर्थिक सहयोग


इसमें कोई सवाल नहीं है कि प्रशांत द्वीप समूह के देशों द्वारा नगण्य ग्रीन्हाउस गैस उत्सर्जन के बावजूद, वे हमारी पीढ़ी के सबसे विशाल संकट – ग्लोबल वार्मिंग – के संघर्ष में सबसे आगे खड़े होकर लड़ रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव न सिर्फ एक पर्यावरणीय या राजनीतिक मुद्दा है, बल्कि यह एक जटिल सामाजिक समस्या भी है जिसके महिलाओं, लड़कियों और हाशिये के समूहों पर विशाल प्रभाव पड़ सकते हैं, जो कि पहले से ही जेन्डर आधारित सत्ता संरचनाओं और संसाधनों पर उनका नियंत्रण न होने के कारण अन्याय झेलते आ रहे हैं। अध्ययनों से पता चला है कि किसी भी प्राकृतिक आपदा के समय पुरुषों के मुकाबले महिलाओं और लड़कियों के मरने की संभावना 14 गुणा अधिक होती है। इसके अतिरिक्त उन्हें अन्य द्वितीयक प्रभावों का भी सामना करना पड़ता है, जिसमें जेन्डर-आधारित हिंसा, आर्थिक अवसरों के कमी, और बढ़ा हुआ कार्यभार शामिल हैं।

जलवायु परिवर्तन के न सिर्फ महिलाओं पर पुरुषों के मुकाबले अधिक प्रभाव होते हैं, बल्कि वे जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। महिलाओं के पास बदलती हुई पर्यावरणीय स्थितियों के अनुसार जीवन में कारगर समाधान ढूँढने का ज्ञान और समझ दोनों होती है। लेकिन उनका ज्ञान और विशेषज्ञता ऐसे संसाधन हैं जिनका लाभ हम अभी तक नहीं उठा पा रहे हैं। प्रतिबंधित भूमि अधिकार, आर्थिक संसाधनों, प्रशिक्षण और प्रौद्योगिकी तक पहुँच न होना, और राजनीतिक निर्णय-प्रक्रिया तक सीमित पहुँच के कारण अक्सर वे जलवायु परिवर्तन व अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों की स्थितियों में तन्यकता बनाने में अपनी पूरी भूमिका नहीं निभा पातीं।

ग्रामीण और दूरस्थ समुदाय ज़्यादा संवेदनशील होते हैं और अक्सर उनके भौगोलिक अलगाव के कारण सुविधाओं की बहाली की प्रक्रिया में उन्हें अनदेखा और अयोग्य मान लिया जाता है। फीजी सांख्यिकी ब्युरो के 2019-2020 घरेलू आमदनी एवं खर्च सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार, शहरी गरीबी के मुकाबले अभी भी ग्रामीण गरीबों की संख्या अधिक है, जिसमें 62.2% गरीब लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।

और जब अंततः संसाधन इन समुदायों तक पहुँच भी जाते हैं, तब भी महिलाएँ, लड़कियां और हाशिये के समूहों को बहाली प्रयासों में नगण्य या बहुत कम सहयोग दिया जाता है, और उनकी आवाज़ें अनसुनी रह जाती हैं। सामुदायिक नेतृत्व में महिलाओं का सीमित प्रतिनिधित्व होने के कारण उनकी विशिष्ट ज़रूरतों की समझ या वे ज़रूरतें संबोधित नहीं हो पातीं।

विमेन्स फंड फीजी (द फंड) में, हमारा लक्ष्य है कि महिलाओं, लड़कियों और हाशिये के समूहों की सम्पूर्ण भागीदारी में बाधा डालने वाली सत्ता असमानताओं में बदलाव लाया जाए, जिसके लिए तुल्य एवं लचीले तरीके से संसाधन उपलब्ध कराए जाएँ जो कि महिलाओं और नारीवादी समूहों, नेटवर्कों और संस्थाओं को जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में बेहतर प्रतिक्रिया करने और अनुकूलन करने में मदद करेंगे।

2022-2024 के लिए हमारी रणनीतिक योजना के अंतर्गत, फंड के छः प्रमुख कार्यक्षेत्रों में जलवायु न्याय और मानवीय सक्रीयता को भी शामिल किया गया है।

पिछले वर्ष, फीजी में दो भयंकर चक्रवात आए और उसके अतिरिक्त वैश्विक महामारी के प्रभाव भी। महिलाओं और जेन्डर गैर-अनुरूप व्यक्तियों की, विशेषकर हिंसा और खाद्य असुरक्षा के क्षेत्रों में बढ़ती ज़रूरतों को देखते हुए फंड ने अपनी रेज़िलियन्स ग्रांट की घोषणा की, जिसके अंतर्गत किसी आकस्मिक संकट के प्राथमिक या उस से उबरने की समयावधि में संकट प्रबंधन या संकट गतिविधियों के लिए सहयोग दिया जाता है। इसके अंतर्गत, वार्षिक रूप से, फंड के वर्तमान या भूतपूर्व सहयोगी संस्थाओं को अधिकतम 50,000 फीजी डॉलर (लगभग 24,000 अमरीकी डॉलर के बराबर) दिया जा सकता है। इसकी घोषणा होने के बाद से, फंड ने अभी तक फीजी में कुल 10 महिला एवं नारीवादी समूहों तथा संस्थाओं को 12 ग्रांट दी है।

फंड को ऑस्ट्रेलिया पेसिफिक क्लाईमेट पार्टनरशिप से तकनीकी सहयोग भी प्राप्त हुआ है, जिससे कि हम अपनी रेज़िलियन्स ग्रांट को बेहतर बना सकें और अपनी सहयोगी संस्थाओं के लिए भविष्य में उपलब्ध होने वाले जलवायु कार्यक्षेत्र के अवसरों तक पहुँच बढ़ाने में मदद कर सकें। द क्लाईमेट पार्टनरशिप, जो कि प्रशांत क्षेत्र में तन्यकता बढ़ाने के कार्यक्रमों में भारी निवेश कर रहा है, वह जलवायु समाधानों के लिए निजी कार्यक्षेत्र में निवेश बढ़ाने के लिए भी सहयोग देगा।

राइज़ बेयोंड द रीफ़ के माध्यम से आपदा-पर्यंत बहाली में महिलाओं के अधिकारों के लिए वित्तीय सहयोग

हमारी रेज़िलियन्स ग्रांट के माध्यम से, फंड ने राइज़ बेयोंड द रीफ़ (आर.बी.टी.आर.) को आदिवासी महिलाओं और उनके ग्रामीण समुदायों के साथ काम करने वाले उनके आपदा-पर्यंत बहाली कार्यक्रम को सहयोग दिया। आर.बी.टी.आर.ने एक दीर्घ-कालीन, लगभग आत्मनिर्भर मूल्य एवं आपूर्ति शृंखला कार्यक्रम स्थापित किया है, जिसमें 350 से अधिक ग्रामीण महिलाएँ और उन पर निर्भर 1500 से अधिक लोग शामिल हैं। उनके आर्थिक सशक्तिकरण कार्यक्रम के माध्यम से, उन्होंने अपनी आपूर्ति शृंखला के लिए, जिला और ग्राम संयोजक ढांचे पर आधारित महिलाओं के नेतृत्व में, एक आपदा प्रतिक्रिया नेटवर्क स्थापित किया है। वर्ष 2015 में इसकी स्थापना से लेकर आज तक, इन ग्रामीण महिलाओं के समूहों ने लगभग 700,000 फीजी डॉलर (336,000 अमरीकी डॉलर +) से अधिक की कमाई की है। आर.बी.टी.आर. का प्रतिक्रिया-बहाली ढांचा समावेशी भी है और ऐसा भी जिसे आसानी से बढ़ाया जा सकता है जिससे कि चक्रवात से तबाह हुए ग्रामीण और दूरस्थ समुदायों की गरिमा को बहाल करने में मदद की जा सके।

इसका एक उदाहरण है आर.बी.टी.आर. का “शेल्टर फ्रॉम द स्टॉर्म” कार्यक्रम जिसे 2016 में श्रेणी पाँच के ऊष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) चक्रवात विंस्टन – दक्षिणी गोलार्ध में रिकार्ड किए गए सबसे तगड़े तूफान – से हुई तबाही के बाद शुरू किया गया था। प्रभावित समुदायों ने अपनी आमदनी के लगभग सभी स्त्रोत खो दिए चूंकि उनकी फसलें उजड़ गईं और पंडणु (वॉइवॉइ) तथा शहतूत के पेड़ (मासी) जैसे कच्चे माल (हस्तशिल्प बानने के लिए ज़रूरी) का भी नाश हो गया था।

इस कार्यक्रम के अंतर्गत कारीगरों को तूफान के बाद बचे कचरे से मूल्य-वर्धित उत्पाद बनाना सिखाया गया। उदाहरण के लिए, गिरे हुए पेड़ों के खूँटों को पेंट करके स्टूल और टेबल बनाया गया। महिलाओं ने गिरे हुए नारियलों के गूदे से तेल और चारा बनाया और उसके छिलकों से आभूषण और मोमबत्ती के स्टैन्ड बनाए। पत्थर और छिलके इकट्ठे किए गए, साफ करके उन्हें पोलिश किया गया, सुंदर तरीके से पेंट करके, उन्हें हाथ से प्रिन्ट किए गए कपड़े के थैलों में रखा गया और टिक-टैक-टो नाम का खेल बनाकर बेचा गया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत समुदायों को पोर्टेबल आरी-मिलें भी दी गईं जिससे कि वे गिरे हुए पेड़ों का उपयोग करके अपने टूटे हुए घरों की मरम्मत कर सकें।

आर.बी.टी.आर. ने इसके बाद समुदायों के साथ मिलकर मध्य-से दीर्घ कालीन आर्थिक बहाली और महिलाओं के लिए अवसरों की योजनाएँ विकसित कीं। इनमें शामिल थे शिल्प और कृषि सहयोग, उत्पाद विकास और बाज़ार तक पहुँच बनाने के लिए सहयोग, और खाद्य असुरक्षा को संबोधित करने के लिए सामुदायिक बगीचों और खाद्य बैंकों को पुनः स्थापित करना। आर.बी.टी.आर. सुनिश्चित करता है कि जब समुदाय अपने जीवन निर्वाह और कमाई, दोनों के लिए फसलें लगाते हैं, तो वे जलवायु लचीले पौधे लगाएँ।

आर.बी.टी.आर.ने इस वर्ष बुआ प्रांत में, दिसम्बर 2020 में आए श्रेणी पाँच ऊष्णकटिबंधी चक्रवात यासा के बाद बहाली के लिए अपने कार्यक्रम को लागू किया। बुआ फीजी के उत्तरी द्वीप पर स्थित है और पहले से ही वहाँ कोविड-19 के प्रभाव महसूस हो रहे थे। कार्यक्रम के माध्यम से, 12 नए मकान बनाए गए और 37 मकानों की मरम्मत की गई, जिसके लिए उन्हीं आरा-मिलों से काटी गई लकड़ी का उपयोग किया गया। आज तक उपयोग की गई काटी गई खुरदुरी लकड़ी का खुदरा मूल्य, घन मात्रा के आधार पर, फीजी डॉलर 300,000 (145,000 डॉलर अमरीकी डॉलर) है।

इस कार्यक्रम की सफलता और मापनीयता का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा बहाली प्रक्रिया के हर कदम पर महिलाओं का नेतृत्व और भागीदारी। आर.बी.टी.आर. सुनिश्चित करता है कि पुनर्निर्माण और निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी हो, और उनकी ज़रूरतों को प्राथमिकता दी जाए। महिलाओं को आरा मशीन चलाने और बढ़ई के काम का भी प्रशिक्षण दिया गया।

विमेन फंड फीजी द्वारा आर.बी.टी.आर. जैसी संस्थाओं को दिए गए सहयोग से हमने समझा कि प्रशांत समुदायों के लिए जलवायु संकट को संबोधित करने के सबसे अच्छे समाधान वही हैं जिनके अंतर्गत पूरे समुदाय को शामिल करते हुए महिलाओं, लड़कियों और हाशिये के समूहों की आवाज़ों और भागीदारी को प्राथमिकता दी जाए।

 

लेखकों के बारे में

किनी राबो फिजी की एक विकास विशेषज्ञ हैं जिन्हें समुदायों, विशेषकर फीजी में महिलाओं के नेटवर्कों के साथ काम करने का 13 वर्षों का अनुभव है। उन्होंने जेन्डर एवं ऊर्जा कार्यक्रमों का भी प्रबंधन किया है और उन्हें आर्थिक सहयोग समन्वय का भी अनुभाव है। किनी ने यूनिवर्सिटी ऑफ द साउथ पेसिफिक और फीजी सरकार के प्रशांत समुदाय के सचिवालय के साथ काम किया है और वर्तमान में वे विमेन्स फंड फीजी में प्रोग्राम ऑफिसर के रूप में कार्यरत हैं।

एरिका ली सामरिक संचार एवं विकास के लिए संचार की विशेषज्ञ हैं जिन्हें प्रशांत क्षेत्र आधारित संचार में 15 वर्षों का अनुभव है। वे प्रशांत के द्वीप समुदायों की आवाज़ को बुलंद करने, सार्थक भागीदारी को सुगम बनाने और सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए विकास पत्रकारिता का उपयोग करने के प्रति जोश रखती हैं। उन्होंने यूनाइटेड नेशन्स कैपिटल डेवलपमेंट फंड, पेसिफिक आईलैंड्स प्राइवेट सेक्टर ऑर्गनीज़ेशन और फीजी सरकार के साथ काम किया है। एरिका वर्तमान में विमेन्स फंड फीजी में कम्यूनिकेशन्स ऑफिसर के रूप में कार्यरत हैं।

विमेन्स फंड फीजी के बारे में

विमेन्स फंड फीजी (द फंड) प्रशांत क्षेत्र का पहला राष्ट्रीय महिला फंड है। हम एक समानुभूतिपूर्ण और अनुकूली नारीवादी फंड हैं जो कि नारीवादी और महिला अधिकार संस्थाओं और आंदोलनों के लिए आर्थिक एवं गैर-आर्थिक संसाधन जुटाने का काम करता है, जिससे कि वे फीजी में महिलाओं, लड़कियों, और जेन्डर गैर-अनुरूपी लोगों के अधिकारों को बढ़ावा देने का काम कर सकें।

फंड ने ऑस्ट्रेलियाई सरकार के पाँच-वर्षीय पकार्यक्रम पेसिफिक विमेन शेपिंग पेसिफिक डेवलपमेंट (पेसिफिक विमेन) कार्यक्रम के रूप में, वर्ष 2017 में अपना काम शुरू किया। द फंड ने वर्ष 2017 से 2022 के बीच ऑस्ट्रेलियाई डॉलर 1 करोड़ 5 लाख खर्च करने का वादा किया है, जिसके अंतर्गत वह फीजी के महिला समूहों, संस्थाओं और नेटवर्कों द्वारा जेन्डर न्याय और मानव अधिकार पर किए जा रहे काम का विस्तार करने और बढ़ाने के लिए उनका क्षमता वर्धन करेगा। वर्ष 2021 में, द फंड का पंजीकरण फीजी के चेरिटेबल ट्रस्ट अधिनियम के अंतर्गत एक स्थानीय निकाय के रूप में हुआ और अब यहाँ एक नया गवर्नन्स बोर्ड है जिसका नेतृत्व फीजी के नारीवादी एवं महिला आंदोलन करते हैं।


Related Post

Anamika Dutt's picture with the text, "welcoming Anamika Dutt, GAGGA's PMEL Officer"

Welcoming Anamika Dutt As GAGGA’s Planning, Monitoring, Evaluation & Learning (PMEL) Officer!

Anamika Dutt is a feminist MEL practitioner from India. Anamika believes that stories of change and impact are best heard…

See more

Bringing Local Realities to Board Level: GAGGA and Both ENDS Partners at the GCF B38 in Rwanda

Last week Both ENDS participated in the 38th Board Meeting of the Green Climate Fund in Kigali, Rwanda, together with…

See more

We Women Are Water – Call To Action To Support And Finance Gender Just Climate Action

Gender just climate action and solutions are in urgent need of your support Women, girls, trans, intersex, and non-binary people…

See more

Subscribe to our newsletter

Sign up and keep up to date with our network's collective fight for a gender and environmentally just world.