ब्लॉग श्रृंखला: न्याय को जलवायु कार्यवाही (एक्शन) के केंद्र में रखना


जब जलवायु से संबंधित आपदाएं जैसे तूफान, बाढ़ या सूखा पड़ता है, तो जो लोग सबसे अधिक प्रभावित होते हैं वे अक्सर ऐसे समुदाय होते हैं जो जलवायु परिवर्तन के लिये कम से कम ज़िम्मेदार होते हैं। जलवायु आपातकाल सामाजिक, जेंडर और नस्लीय असमानता के एक बहुत बड़े और पुराने संकट का एक लक्षण है जो उपनिवेशवाद से पहले का है। इस समय के दौरान ही औद्योगिक देशों और निगमों ने वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) में समुदायों के खिलाफ शोषण, बेदखल करने और हिंसा का उपयोग करने की भारी कीमत पर प्राकृतिक संसाधनों को निकालने और जीवाश्म ईंधन को जलाने से धन इकट्ठा करना शुरू कर दिया था।

जलवायु संकट को सार्थक तरीके से संबोधित करना तभी संभव है जब हम इन मूल कारणों से निपटें और उन संरचनाओं को बदल दें जो हमें वहाँ लाये हैं जहाँ आज हम हैं, विशेष रूप से असीमित निष्कर्षण और अति उपभोग पर आधारित आर्थिक विकास के प्रमुख मॉडल। जब हम “जलवायु न्याय” के बारे में बात करते हैं तो हमारा यही मतलब होता है। जलवायु संकट यह साबित कर रहा है कि, कोविड-19 महामारी की तरह, एक वैश्विक आपातकाल न केवल पहले से मौजूद असमानताओं को पुष्ट करता है, बल्कि यह उन्हें और भी बढ़ा देता है।

जलवायु संकट पुरुषों की तुलना में महिलाओं और लड़कियों को अधिक प्रभावित करता है। अन्य कारकों में, प्रतिबंधात्मक सांस्कृतिक मानदंड और प्राथमिक देखभाल करने वालों और भोजन, पानी और ईंधन के प्रदाताओं के रूप में जेंडर भूमिका का मतलब है कि महिलायें आम तौर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सबसे पहले प्रभावित होती हैं। महिलायें और उनके समुदाय भी लंबे समय से उचित जलवायु कार्यों का प्रस्ताव और नेतृत्व कर रहे हैं – पैतृक ज्ञान को लागू करने और खाद्य संप्रभुता प्राप्त करने से लेकर जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण का विरोध करने और स्थानीय और राष्ट्रीय पर्यावरण नीति में योगदान देने तक।

हालाँकि, उनकी ज़रूरतों, मांगों और प्रस्तावों की अनदेखी की जा रही है। इस सप्ताह पेरिस समझौते के बाद से सबसे महत्वपूर्ण जलवायु वार्ता के रूप में, राष्ट्रीय और वैश्विक जलवायु वार्ता निकायों में महिलाओं का औसत प्रतिनिधित्व 30% से कम है। पिछले सीओपी (COP)  यूएन जलवायु शिखर सम्मेलन में, सरकारों ने एक जेंडर एक्शन प्लान अपनाया जो जलवायु वार्ता में “महिलाओं की समान और सार्थक भागीदारी”, विशेष रूप से ज़मीनी स्तर के संगठनों की महिलाओं के साथ-साथ स्थानीय और स्वदेशी लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करता है।  कुछ साल बाद, हम देखते हैं कि सीओपी (COP)  में असमानताओं का रुख़ (पैटर्न) जारी है, जिसके कारण वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) की महिलाओं, लड़कियों और समुदायों का प्रतिनिधित्व अभी भी अपर्याप्त है – ऐसा आंशिक रूप से कोविड-19 और यात्रा प्रतिबंधों के कारण है।

सीओपी26 (COP26) और उसके बाद की जलवायु वार्ता में किये गये निर्णय यह आकार देंगे कि सरकारें जलवायु आपातकाल के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करती हैं; संकट से सबसे अधिक प्रभावित लोगों को बाहर करने से केवल ऐसे समाधान निकलेंगे जो असमानताओं को और बढ़ाएंगे। सभी आवाज़ें, विशेष रूप से अफ्रीका, एशिया, प्रशांत और लैटिन अमरीका की महिलाओं और लड़कियों की आवाज़ सुनी जानी चाहिये ताकि वे हमारे सामूहिक भविष्य के निर्माण में अपनी सही भूमिका निभा सकें।

वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5C तक सीमित करने के लिये कार्बन उत्सर्जन में कटौती करना और ऐसा करने के लिये प्रासंगिक तकनीक महत्वपूर्ण है, लेकिन जलवायु संकट के प्रति हमारे दृष्टिकोण को भी एक ऐसे समाज के निर्माण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है जो सामाजिक न्याय, मानव अधिकारों और सभी लोगों और ग्रह की देखभाल पर केंद्रित हो। .

​​आने वाले हफ्तों में, हम अपने साझेदारों (पार्टनर्स) और सहयोगियों – campesinasfeministas, युवा जलवायु कार्यकर्ता, स्वदेशी सामूहिक संस्थाएं,  अश्वेत और प्रवासी महिलायें, विकलांग समूह, LBTQI+ समुदाय के सदस्य और जलवायु और जेंडर न्याय पर काम करने वाले संगठन – से ब्लॉग पोस्ट की एक श्रृंखला प्रकाशित करेंगे जो ऐसे समाज की दिशा में काम कर रहे हैं और जो दुनियाभर से विभिन्न प्रकार की आवाज़ों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे यह बताते हुये अपने अनुभव साझा करेंगे कि जलवायु न्याय जेंडर और सामाजिक न्याय भी क्यों है, और जलवायु संकट के लिये जेंडर-न्यायपूर्ण दृष्टिकोण के लिये अपनी मांगों और प्रस्तावों पर प्रकाश डालेंगे। हमें उम्मीद है कि इन कहानियों से पता चलता है कि जब हम एक साथ काम करते हैं तो हम एक ऐसे भविष्य को प्राप्त करने के लिये आवश्यक परिवर्तनकारी बदलाव पर ज़ोर दे सकते हैं जो अधिक समावेशी, टिकाऊ और जेंडर-न्यायपूर्ण हो।


Related Post

Anamika Dutt's picture with the text, "welcoming Anamika Dutt, GAGGA's PMEL Officer"

Welcoming Anamika Dutt As GAGGA’s Planning, Monitoring, Evaluation & Learning (PMEL) Officer!

Anamika Dutt is a feminist MEL practitioner from India. Anamika believes that stories of change and impact are best heard…

See more

Bringing Local Realities to Board Level: GAGGA and Both ENDS Partners at the GCF B38 in Rwanda

Last week Both ENDS participated in the 38th Board Meeting of the Green Climate Fund in Kigali, Rwanda, together with…

See more

We Women Are Water – Call To Action To Support And Finance Gender Just Climate Action

Gender just climate action and solutions are in urgent need of your support Women, girls, trans, intersex, and non-binary people…

See more

Subscribe to our newsletter

Sign up and keep up to date with our network's collective fight for a gender and environmentally just world.