जलवायु आपात स्थिति का सामना : एक ऐसा संकट जिसे हमने पैदा नहीं किया।


मेरा नाम सोफ़िया गुटीरेज़ है, और मैं एक सशस्त्र संघर्षपूर्ण इलाके में बड़ी हुई। कोलंबिया में, हिंसा के साथ-साथ ही जीवन भी बढ़ता चला गया। मुझे रोज़ रात को मेरी दादी कहानियाँ सुनाती थीं कि किस तरह उन्हें अपने परिवार के साथ शहरी इलाकों के बाहर हो रहे दंगों के कारण भाग कर आना पड़ा। उन्हें लगातार यही सुनने में आता था कि जो लोग वहीं रह रहे हैं उन्हें मार दिया जा रहा है, उनके अंदर डर बढ़ता रहा लेकिन इसके बावजूद वे बदलाव और न्याय की लड़ाई के लिए तरस रहे थे।

और यह सिर्फ कहानियाँ ही नहीं है; यह कोलंबिया के उन संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की हकीकतें हैं जिनके पास डरने तक का समय नहीं है क्योंकि उन्हें वापस लड़ना ज़्यादा ज़रूरी है। उन्हें अपने समुदायों को दोहनकारी विचारधारा और युद्ध, दोनों के कारण होने वाले विनाश से बचाना है।

अगर आप पर्यावरण की चिंता करते हैं, तो कोलंबिया विश्व का सबसे खतरनाक देश है; पिछले वर्ष 65 पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं को मार दिया गया। विश्व के नेता, बैंक और बड़ी-बड़ी कंपनियां दैनिक स्तर पर सबसे ज़्यादा प्रभावित लोगों और क्षेत्रों पर होने वाले प्रभावों को नज़रंदाज़ करते हैं, क्योंकि वे उससे खुद प्रभावित नहीं हैं।

यह हमें एक मौलिक सोच की दिशा में ले जाता है: कि सबसे अधिक प्रभावित लोगों और क्षेत्रों को हमेशा ही पीछे छोड़ दिया जाता है। मुख्यतः इसलिए क्योंकि आर्थिक ढांचा हमें मौलिक मानव अधिकारों के लायक भी नहीं समझता। वैश्विक दक्षिण क्षेत्र में लंबे समय से जलवायु संकट छाया हुआ है; यह हमारे लिए नया नहीं है।

जलवायु संकट का आधार तो औपनिवेशीकरण के समय से ही बन कर तैयार हो चुका था। औपनिवेशवाद के साथ-साथ विशाल स्तर पर पृथ्वी का दोहन और नरसंहार हुआ, स्वदेशी ज्ञान को खत्म कर दिया गया। उस समय तो यही माना जाता था कि हमारे देश और देश के लोगों को एक उपहार की तरह औपनिवेशी शासकों को सौंप दिया गया था, जिससे कि वे बिना किसी रोकटोक के अपनी ज़रूरतें पूरी कर सकें। उन्होंने पवित्रता और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के विचार को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया।

इस सब के कारण, हम अपने रोज़मर्रा के जीवन में आज भी तेज़ी से बढ़ती खपत और दोहनकारी रवैये का खेल देखते हैं, जो अभी भी वैश्विक उत्तरी देशों की आर्थिक व्यवस्था को पनपा रहे हैं। इसको ध्यान में रखते हुए, यह स्वीकारना ज़रूरी है कि जिन देशों में औपनिवेशिक राज रहा, वहाँ से आज के दिन अन्य देशों के मुकाबले कम ग्रीन्हाउस गैस उत्पन्न हो रही है। हम दोहनकारियों के लिए केवल संसाधन उपलब्ध कराते हैं, लेकिन इसके बावजूद हमें जलवायु संकट के सबसे बुरे प्रभाव झेलने पड़ते हैं – एक ऐसा संकट जिसे खड़ा करने में हमारा कोई हाथ नहीं।

अगला ज़रूरी कदम क्या होना चाहिए? जीवाश्म ईंधन (फोसिल फ्यूल्स) के लिए पैसा देना बंद करो और एक न्यायसंगत ऊर्जा बदलाव लागू करो।

मैं कार्यकर्ता के रूप में अपने काम में इसी मुद्दे पर ज़ोर दे रही हूँ। अगस्त 2019 में, जब मेरे देश के वर्षा-वनों के एक भाग को जलाया जा रहा था, तब मुझे जलवायु संघर्ष लड़ने में संतोष मिला। जैसे-जैसे मैं जलवायु आंदोलन में जुड़ती गई, मुझे जलवायु परिवर्तन और सामाजिक न्याय के बीच के रिश्ते की गहराई का अहसास हुआ और मैंने खुद उन लोगों की कहानियाँ सुनीं जिन्होंने मेरे देश में हो रहे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना किया था। मेरे परिवार के अनुभव से, हम हेमशा इंतज़ार करते रहते थे कि क्या बारिश के मौसम में हमारा घर डूब जाएगा।

मुझे समझ में आने लगा कि मेरा देश पर्यावरणीय मुद्दों पर तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक कि, हमें शिक्षा और जानकारी तक पहुँच नहीं मिलती कि हम अपने क्षेत्रों की ठीक से सुरक्षा कैसे कर सकते हैं और आगे बढ़कर संघर्ष करने वालों को कानूनी उपायों की मदद कैसे दी जाए। मुझे अपनी सरकार के साथ फ्रेकिंग, जलवायु आपात स्थिति घोषित करने और शिक्षा के मुद्दों पर राष्ट्रीय स्तर की चर्चाओं में भाग लेने का मौका मिला। जैसे-जैसे मैं राजनीति में और शामिल होती गई, मैंने अपनी स्थानीय सरकार के साथ काम किया और तय किया कि मैं गुणवत्तापूर्ण पर्यावरणीय शिक्षा तक सबकी पहुँच स्थापित के लिए संघर्ष करूंगी। गैर-सरकारी संस्थाओं, नागरिकों, और मानव अधिकार तथा पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं के अथक प्रयासों के बाद, बोगोटा ने स्थानीय परिषद और सिटी हॉल में जलवायु आपात स्थिति घोषित की और उन्होंने हरित नीतियाँ बनाने की शुरुआत की।

आजकल मैं एक युवा संस्था पकटो एक्स एल क्लाईमा के साथ जुड़ी हुई हूँ। हमारी शुरुआत एक युवा आंदोलन के रूप में हुई और हमारा मुख्य उद्देश्य है कि युवाओं को निर्णय-प्रक्रिया में जगह दी जानी चाहिए। सौभाग्य से, जिसकी शुरुआत 12 जुनूनी युवा कार्यकर्ताओं के साथ हुई थी, वह अब एक युवा संस्था के रूप में जलवायु संकट के खिलाफ लड़ रहे हैं, जिसके अंतर्गत कई अलग-अलग कार्यक्रम हैं, जैसे कि पर्यावरणीय शिक्षा का कार्यक्रम, जिसे मैंने स्थापित किया।

मेरा मानना है कि बदलाव की शुरुआत जानकारी से होती है और जलवायु संघर्ष का एक हिस्सा है युवाओं को जानकारी और गुणवत्तापूर्ण पर्यावरणीय शिक्षा दी जाए – उनके अधिकार के रूप में, न कि विशेषाधिकार की तरह। जब लोगों के पास जानकारी होगी और सीखने के लिए उचित माहौल होगा, उससे विश्व को एक और सामाजिक तथा जलवायु न्याय कार्यकर्ता मिलेगा। कार्यकर्ताओं, शिक्षा तक पहुँच रखने वाले लोगों के रूप में, यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम अन्य लोगों को समानता प्राप्त करने में मदद करें जिससे कि उन्हें भी वे अवसर मिल सकें, जो हमें मिले हैं। कोलंबिया और विश्व के अन्य सबसे खतरनाक क्षेत्रों में रहने वाले युवाओं के लिए, जलवायु संघर्ष का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि उन्हें मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए अपने जीवन को खतरे में डालना पड़ेगा।

वर्ष 2019 से मैं कार्यशालाएं आयोजित करती हूँ कि हम कैसे अलग-अलग लोगों (विशेषकर युवाओं) को जलवायु संकट पर काम करने में मदद कर सकते हैं, और इसमें सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएँ भी शामिल हैं। मेरे काम के माध्यम से मैं जिस समाज में रहती हूँ उस समाज में एक बदलाव लाना चाहती हूँ, जिससे कि हम एक बेहतर दुनिया बना सकें। और इसी लिए मैं फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर के साथ जुड़ी – ताकि जिस समय पर वैश्विक निर्णय और नीतियाँ बनाई जा रही हैं, ऐसे समय में मेरे देश की कहानी भुलाई न जाए, और जो लोग आगे बढ़कर संघर्ष कर रहे हैं उन्हें अब चुप न कराया जा सके।

 

सोफ़िया गुटिरेज़ कोलंबो की जलवायु संकट कार्यकर्ता हैं और वे पकटो एक्स एल क्लाईमा तथा फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर मापा के साथ काम करती हैं। कॉप 26 से पहले स्वीडन में एक जलवायु हड़ताल में सोफ़िया ने जो भाषण दिया था, उसे आप यहाँ देख सकते हैं।


Related Post

Anamika Dutt's picture with the text, "welcoming Anamika Dutt, GAGGA's PMEL Officer"

Welcoming Anamika Dutt As GAGGA’s Planning, Monitoring, Evaluation & Learning (PMEL) Officer!

Anamika Dutt is a feminist MEL practitioner from India. Anamika believes that stories of change and impact are best heard…

See more

Bringing Local Realities to Board Level: GAGGA and Both ENDS Partners at the GCF B38 in Rwanda

Last week Both ENDS participated in the 38th Board Meeting of the Green Climate Fund in Kigali, Rwanda, together with…

See more

We Women Are Water – Call To Action To Support And Finance Gender Just Climate Action

Gender just climate action and solutions are in urgent need of your support Women, girls, trans, intersex, and non-binary people…

See more

Subscribe to our newsletter

Sign up and keep up to date with our network's collective fight for a gender and environmentally just world.